बात 2013/14 की रही होगी, जब हमलोग अन्ना हजारे को मंच से मिमियाते देख उन्हें शेर मानने की गलती कर बैठे थे। बाद में विवेकानंद फाउंडेशन के बारे में जान कर अपने को ठगा महसूस भी किए थे। उन्हीं दिनों मेरा दोस्त जो अन्ना का विरोध करता था, वो एक संत से बराबर मिलता रहता था। उस संत के बारे में सुन – सुन कर उनके प्रति जिज्ञासा भी उत्पन्न हुई थी। मेरा दोस्त मुझे वहां ले जाना नहीं चाहता था क्योंकि उसके अनुसार मैं इंप्लसिव था और वो संत गलत सवाल करने पर जोर से डंडा मारते थे। उस संत के अनुसार व्यक्तियों में अराजकता की शुरुआत हो चुकी है और दिन पर दिन यह दोगुना होता जाएगा। अराजकता से आपका क्या मतलब?– मेरा मतलब व्यक्तिगत अराजकता से है, जैसे– आदमी भेड़ बनेगा, तर्क से उसका कोई वास्ता नहीं रहेगा, सूचनाओं को हूबहू स्वीकार करेगा। भ्रम सत्य को ढकता चला जाएगा और एक समय ऐसा भी आएगा जब सत्य की कोई झलक मिलनी भी बंद हो जाएगी और जैसा भेड़ का नियति होता हैं, स्वादिष्ट गोश्त खातिर खत्म कर दिया जाएगा। उन्हीं दिनों मेरा दोस्त एक एकांकी को निर्देशित किया था जिसका फोटोकॉपी मेरे पास रह गया था, जिसे मैं हूब...
हम आंखे खोलते हैं, आंखो को कुछ भा जाती है। मन सोचता है कि काश यह मेरा होता। विचारो द्वारा इच्छाओं का जन्म होता है और घनीभूत होते विचार हमे चाहते ना चाहते उस ओर धकेल देते है। इच्छाओं का जन्म हुआ है तो मृत्यु आवश्य होगा लेकिन इच्छाओं की मृत्यु सहज नहीं होती। इसका पूरा होना ही मृत्यु है चाहे वास्तविकता में पूरा हो चाहे कल्पना में।
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