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अराजकता, राजनीति, भेड़ भीड़

बात 2013/14 की रही होगी, जब हमलोग अन्ना हजारे को मंच से मिमियाते देख उन्हें शेर मानने की गलती कर बैठे थे। बाद में विवेकानंद फाउंडेशन के बारे में जान कर अपने को ठगा महसूस भी किए थे। 
उन्हीं दिनों मेरा दोस्त जो अन्ना का विरोध करता था, वो एक संत से बराबर मिलता रहता था। उस संत के बारे में सुन – सुन कर उनके प्रति जिज्ञासा भी उत्पन्न हुई थी।
मेरा दोस्त मुझे वहां ले जाना नहीं चाहता था क्योंकि उसके अनुसार मैं इंप्लसिव था और वो संत गलत सवाल करने पर जोर से डंडा मारते थे। 
उस संत के अनुसार व्यक्तियों में अराजकता की शुरुआत हो चुकी है और दिन पर दिन यह दोगुना होता जाएगा। 
अराजकता से आपका क्या मतलब?– मेरा मतलब व्यक्तिगत अराजकता से है, जैसे– आदमी भेड़ बनेगा, तर्क से उसका कोई वास्ता नहीं रहेगा, सूचनाओं को हूबहू स्वीकार करेगा। भ्रम सत्य को ढकता चला जाएगा और एक समय ऐसा भी आएगा जब सत्य की कोई झलक मिलनी भी बंद हो जाएगी और जैसा भेड़ का नियति होता हैं, स्वादिष्ट गोश्त खातिर खत्म कर दिया जाएगा।
उन्हीं दिनों मेरा दोस्त एक एकांकी को निर्देशित किया था जिसका फोटोकॉपी मेरे पास रह गया था, जिसे मैं हूबहू प्रकट कर रहा। 

#एकांकी: सच और भ्रम

पात्र:

1. सत्य – शांत, स्थिर और तर्कशील

2. भ्रम – चंचल, मोहक और छलपूर्ण

3. मनुष्य – दुविधा में पड़ा हुआ

(मंच पर अंधकार है। धीरे-धीरे हल्का प्रकाश फैलता है। मनुष्य बीच में खड़ा है, उलझन में डूबा हुआ। सत्य और भ्रम, दोनों उसके पास खड़े हैं।)

मनुष्य (खुद से): यह कैसा द्वंद्व है? मैं जिस राह पर चलता हूँ, वहाँ कभी रोशनी होती है, कभी धुंध। जो मैं देखता हूँ, क्या वह सच है? या यह सिर्फ एक भ्रम?

भ्रम (मोहक स्वर में): क्यों सोचते हो इतना? जीवन सुंदर है, जैसा तुम्हें दिखता है, वैसा ही तो है। जो मन चाहे, उसे सच मान लो। सुख में जीओ, सपनों में खो जाओ!

सत्य (गंभीर स्वर में): जीवन केवल देखने या मान लेने का नाम नहीं, उसे समझना भी आवश्यक है। जो दिखता है, वह हमेशा सच नहीं होता। भ्रम सुंदर हो सकता है, पर वह टिकता नहीं।

मनुष्य (व्याकुल होकर): लेकिन सत्य कठिन लगता है, और भ्रम सुखद! सत्य की राह में संघर्ष है, और भ्रम में आराम। मैं किसे चुनूँ?

भ्रम (हंसकर): देखो न! मैं तुम्हें कितनी सुंदर कल्पनाओं में ले जा सकता हूँ। बिना प्रयास के, बिना दर्द के! क्या तुम सच्चाई की कठोरता में खुद को झोंकना चाहोगे?

सत्य (शांत लेकिन दृढ़): सत्य कठिन हो सकता है, परंतु वही स्थायी है। भ्रम तुम्हें पल भर का आनंद देगा, लेकिन अंत में दुख ही देगा। सोचो, क्या तुम एक झूठी दुनिया में जीना चाहते हो?

(मनुष्य सोच में पड़ जाता है। मंच पर प्रकाश और अंधकार का खेल चलता है। अंत में, मनुष्य गहरी सांस लेता है और सत्य की ओर बढ़ता है। भ्रम धीरे-धीरे फीका पड़ जाता है।)

मनुष्य (मुस्कुराकर): मैं अब समझ गया। भ्रम मोहक है, लेकिन सत्य ही मेरा मार्ग है।

(सत्य और मनुष्य आगे बढ़ते हैं। मंच पर उजाला फैल जाता है। पर्दा गिरता है।)

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