वह रेगिस्तान था रेगिस्तान ही रहा। लोग आते रहे, कदमों के निशान बनते रहे और आंधियां निशान मिटाती रही। **************************************** वह एक पहाड़ी लड़का था तो पहाड़ी लोककथा और लोकगीत सुनते हुए बड़ा हुआ था। सपने भी उसे हरा–भरा और रोमांच वाले ही आते थे। लेकिन अक्ल का दांत टूटते ही उसके सपने, दुस्वप्न में बदल चुके थे। सपनों का ऐसा डर की रात में सोने से डर लगे। नींद की गोलियों के असर से सपने रात भर के लिए सप्रेस्ड तो हो जाते थे लेकिन होश आने पर, दिन की रौशनी में उसकी काली परछाई चारों तरफ से घेरे रहती। वर्षो बाद उसे फिर से वही दुस्वप्न दिखने लगे थे। उसे ताज्जुब हो रहा था कि उसका जीना नया हैं, कर्म नया हैं और कर्म का कोई अतीत भी नही होता, फिर भी वर्षो बाद वही दुस्वप्न आ रहे हैं। वह एक पहाड़ की आसान सी चढ़ाई पर चढ़ रहा हैं। यह सूर्यास्त से ठीक पहले का समय है। पहाड़ की चोटी गाढ़ी रौशनी से नहाई हुई हैं। यह रौशनी डरावनी रूप में उसकी तरफ बढ़ रही है। पहाड़ की तलहटी में पानी की ठहरी हुई एक झील हैं, जो अस्त हो रहे सूरज के रंगों से झिलमिला रहीं हैं। अचानक अंध...
हम आंखे खोलते हैं, आंखो को कुछ भा जाती है। मन सोचता है कि काश यह मेरा होता। विचारो द्वारा इच्छाओं का जन्म होता है और घनीभूत होते विचार हमे चाहते ना चाहते उस ओर धकेल देते है। इच्छाओं का जन्म हुआ है तो मृत्यु आवश्य होगा लेकिन इच्छाओं की मृत्यु सहज नहीं होती। इसका पूरा होना ही मृत्यु है चाहे वास्तविकता में पूरा हो चाहे कल्पना में।