- नई किताब से एक कहानी ----------------------------------- वो रोबोट था। रोबोट भी इसीलिए था कि संवेदनशील होना आसान नहीं रहा होगा। खुद के बनावट को खुद अपने ही हाथों मिट्टी में मिला चुका था। कुछ लोहे की मजबूत जाल थीं, जिसे गलने में देर लगी थी। तपस्या करनी पड़ी थी उसे, भावनाओं का कतरा-कतरा निचोड़ कर सांसो के ज़रिए निकाल बाहर फेका था। वह प्रोग्राम्ड था। इनपुट डालने से आउट पुट निकलता था। भावनाओं के लिए सारे पॉवर सप्लाई बंद कर दी गई थी। लोगो के लिए अनबुझ - विचित्र! लोगो का खुद के लिए प्रेडिक्ट करते देख वो जोरदार ठहाका लगाया करता था। खुद की बनाई हुई अपनी इस नई बनावट को देख, वो खुद भी अपने ऊपर मुग्ध हो जाया करता। उसके संसार बदल चुके थे। कोई भी कीमत आज़ादी से बड़ी नहीं हो सकती। और वो आज़ाद था - रूह से, मन से, शरीर से भी। शरीर और मन का मौत देखने पर ऐसा सबके साथ होता है, पर रोबोट तो खुद को नए सांचे में ढालने वास्ते कई बार मरा भी था। और मौत के ऊपर छलांग लगा कर हर बार वो खिलखिला पड़ता था। गुजरता था अकेले ही रास्तों से। रास्तों से बाते करते, पेड़ो की खूबसूरती को निह...
हम आंखे खोलते हैं, आंखो को कुछ भा जाती है। मन सोचता है कि काश यह मेरा होता। विचारो द्वारा इच्छाओं का जन्म होता है और घनीभूत होते विचार हमे चाहते ना चाहते उस ओर धकेल देते है। इच्छाओं का जन्म हुआ है तो मृत्यु आवश्य होगा लेकिन इच्छाओं की मृत्यु सहज नहीं होती। इसका पूरा होना ही मृत्यु है चाहे वास्तविकता में पूरा हो चाहे कल्पना में।