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पॉइंट ज़ीरो

- नई किताब से एक कहानी
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वो रोबोट था। रोबोट भी इसीलिए था कि संवेदनशील होना आसान नहीं रहा होगा। खुद के बनावट को खुद अपने ही हाथों मिट्टी में मिला चुका था। कुछ लोहे की मजबूत जाल थीं, जिसे गलने में देर लगी थी। तपस्या करनी पड़ी थी उसे, भावनाओं का कतरा-कतरा निचोड़ कर सांसो के ज़रिए निकाल बाहर फेका था।  वह प्रोग्राम्ड था। इनपुट डालने से आउट पुट निकलता था। भावनाओं के लिए सारे पॉवर सप्लाई बंद कर दी गई थी। लोगो के लिए अनबुझ - विचित्र! लोगो का खुद के लिए प्रेडिक्ट करते देख वो जोरदार ठहाका लगाया करता था। 
खुद की बनाई हुई अपनी इस नई बनावट को देख, वो खुद भी अपने ऊपर मुग्ध हो जाया करता। उसके संसार बदल चुके थे। कोई भी कीमत आज़ादी से बड़ी नहीं हो सकती। और वो आज़ाद था - रूह से, मन से, शरीर से भी। 
शरीर और मन का मौत देखने पर ऐसा सबके साथ होता है, पर रोबोट तो खुद को नए सांचे में ढालने वास्ते कई बार मरा भी था। और मौत के ऊपर छलांग लगा कर हर बार वो खिलखिला पड़ता था।
गुजरता था अकेले ही रास्तों से। रास्तों से बाते करते, पेड़ो की खूबसूरती को निहारते, वादियों की फैलाव को खुद में ढूंढ़ते, नदियों की रवानगी का दीवाना हो एक अंजुल पानी अपने चेहरे पर मार लेता था जैसे पूरी नदी ही अा गई हो उस एक अंजुल में। धूप से बेहाल भी होता था, पर नाजुक चिड़ियों को कड़ी धूप में  आकाश में खिलखिलाते देख जोश से भर उठता था। ऐसा नहीं की थकता नहीं था पर पानी के लिए बेचैन नहीं होता था। चुकी उसके अंदर मन नहीं था तो हिंसा भी नहीं थी। हिंसा और मन का अभाव सबको उसके लिए आकर्षित करता और वो सबकी सुनता, अपनी अनुभवों से राह दिखाता, रास्तों से बातें करता आगे बढ़ता जाता था। 
उस वक़्त वह कठिन चढ़ाई चढ़ रहा था।  पहाड़ की उच्चाई का कुछ अंदाजा नहीं लग पा रहा था। ऊपर चलने वाली सर्द हवा मौत का सबब थी, इस कारण से कोई वहां आता-जाता नहीं था। हवाओं से पता चला था कि एक सुंदर राजमहल रास्ते में आएगा, बड़ी सुंदर जगह हैं।  तुम थोड़ा ठहर सकते हो। और वो राजमहल जल्द ही सामने दिखने भी लगा था। "पहाड़ों की एक खास बात होती है कि वो अक्सर गुमराह कर देती है, भटका देती है। तुम थोड़ा ठहरते हुए आगे बढ़ना" - हवा ने मुस्कुराते हुए रहस्य उजागर किया था। एक पेड़ कि आड़ में बैठ गया था और नींद लग गई थी। नींद खुला तो शाम का सूरज रंगीन हो रोबोट के अंदर तक को उजालों से भर डाला था। चिड़ियों का झुंड गुजरता था। किसी अजनबी राही को यू देख आपस में बाते करने लगी थी। उनकी बातों का सार शायद उसका आत्मघाती यात्रा रहा हो। उनमें से एक चिड़िया कुछ अपनी सी लगी थी। वो झुंड से निकल पास आई थी। मुझे जानने समझने को उतावली थी। रोबोट का प्रोग्राम्ड उतर देख उसे संतुष्टि नहीं मिली थी। उसे बेवजह उस रोबोट पर दया अा रही थीं और अपने लिए दया देख रोबोट को गुस्सा। 
डर उसे लगता है जिसे किसी चीज़ से मोह हो, और रोबोट रात के अंधेरे में ही आगे बढ़ चला था। हर बढ़ता कदम कठिन परीक्षा लेे रहा था। 
दूर-दूर मिलों दूर लोग बाग,  दूर तक फैली वादियां, धूआ- धुआं हर बदली चेहरे को छू कर गुजरती जा रहीं थी। 
अबकी बार दोपहर को ही वो चिड़िया टकरा गई थी, मिलो दूर तक उसने मेरा पीछा किया था। 
रोबोट के अंदर जो मन के बीज छुपे पड़े थे उन्हें साहस मिला थोड़ा भाव पूर्ण खिलखिलाने का। मन के पास करने को ढेरों बाते थी, दोनों करते रहे थे। चिड़िया भी भूख प्यास सब भूल कर  पास बैठी रहीं थीं। जिस मन को वो भूल चुका था, उसका यूं अचानक प्रकट होना रोबोट को डराने लगा था। मन के खोखलेपन को वो मर मर के जी चुका था और बड़ी मुश्किल से इस मन से आज़ाद हुआ था। 
अब वही मन मुस्कुरा रहा था। जैसे बोल रहा हो - कहां तक भागोगे? जब जबरदस्ती करता तो ये मन कई रूपों में सामने आता। कभी बीमारी कभी दर्द कभी गुस्सा...
अंधेरा होने को था और वो चिड़िया के लौटने का समय था। रोबोट से बिना पूछे कि वो क्या चाहता है, अगले दिन मिलने का वादा कर वो उड़ चली थीं। मन वादों को पकड़ लिया था चुपके से।
रोबोट फिर भी नहीं रुका था। आगे बढ़ता ही रहा। 
लेकिन वो चिड़िया भी जिद्दी थी। पीछे-पीछे मिलो दूर तक चली आई। अजीब असमंजस में पड़ा रोबोट ठहर गया। शायद किसी का इतना मनुहार उसने जाना नहीं था और ना किसी के  पवित्रता को अनदेखा करना ही सीखा था। 
खूब सारी बातें होने लगी थी। यहां के लोग बाग, फूल- पौधे, रहस्यमई राजा - उसका जादू।   नदियों की बातें करती। पहाड़ों पर चलने वाली सर्द हवाओं की बातें करती और अधिकार से रोबोट को माना करती की तुम्हे यहीं मेरे पास रुकना है ऊपर नहीं जाना हैं। 
"अच्छा मै तुम्हे किसी दिन तितलियों के देश लेे चलूंगी तुम्हे बहुत अच्छा लगेगा"। फुसफुसाते हुए वो रोबोट के पास और सिमट आई थीं। उसे हर वो चीज अच्छा लगता जो शुभ हो। पवित्र हो और जो औरों के जीवन के दर्द को दूर करे। वो बहुत दयालु थी।  मरुस्थल में खड़े उस अकेले पेड़ कि तारीफ करती, जो ना जानें कितनो की जीवन झुलसने से बचा लिया था। 
वो जितना बोलती उतना ही मन उससे जुड़ते हुए अपने सच होने का दावा करता जाता। रोबोट अनमने से ही सही पर मन को रोक नहीं पा रहा था और मन एक-एक भावनाओं को बाहर निकालता जा रहा था। 
रोबोट पिघल रहा था। उसके प्रोग्रामिंग में  कन्फ्लिक्शन पैदा होना शुरू था। 
ऊंचाइयों की तरफ बढ़ता रोबोट की चाल अब धीमी हो चली थी। अब वो उस चिड़िया की राह देखा करता जिसे सब लोटस बोल पुकारते थे।  मुलाकात होते ही चहक पड़ता। चिड़िया भी और जोश से चहकने लगती जिससे वो और भी प्यारी लगने लगती। 
"तुम ठहर जाओ ना मेरे पास"। लोटस ने भावुक हो बोला।
वो उसके आंखो को चूमते और गुदगुदी करते उसे छेड़ा था - " जितना किस्स उतना दिन"। 
"धत" !  वो शरमा रही थी। 
शर्म से उसके गाल लाल हो जाते थे और उसे छुपाने खातिर उसका डिंपल सामने अा जाता था। 
रोबोट बनने से पहले के अनुभव ने रोबोट को चेताया भी था कि ठहरना तुम्हारी नियति नहीं। ठहर जाओगे तो गंदे हो जाओगे! जैसे रुक चुकी नदी पवित्रता को खो देती हैं।
बहुत धीमे ही सही आगे बढ़ता था, मगर वो रुका नहीं था। हां अब उसका मन उसके लिए बार-बार कंफर्ट की याद दिलाते रहता और पैरों को जकड़ने की कोशिश किया करता था। 
"मैंने माना किया था ना कि तुम्हें कहीं नहीं जाना है? देखो तो ठंड ने क्या हाल कर रखा है"? - वो सच में मेरे लिए चिंतित थी। 
मैंने फिक्की मुस्कान के साथ व्यंग किया -
"क्या ठहरना संभव है? क्या तुम मेरे साथ रहोगी"? चिड़िया सिर्फ देखती रही... कुछ बोली नहीं क्योंकि उसे पता था कि वो राजा की गुलाम है जिसकी अपनी कोई स्वतंत्रता नहीं। खुद को रोक नहीं पाती और मेरा ख्याल रखने खातिर चुपके से मिलने आती हैं। 
"पर तुम हमेशा मेरे आस-पास रहना, मै तुम्हारे साथ खुद को जिती हूं"! अपने हाथों से कुछ खिलाती हुई उसके अंदर से बचपना बोल रहा था। उसे पता था कि ये संभव नहीं मगर उसे विश्वास था कि ऐसा हो सकता है। रोबोट भी उलझन में था। रोबोट को भी पता था कि भला कौन राजा से लडने जाएगा बिना हथियारों के! 
लेकिन उसके हिम्मत खातिर रोबोट भी साथ चलने का वादा किया था किले के द्वार तक। झरोखों से झांकने तक का। हर उस चीज का वादा किया जो जीते जी किया जा सके। 
दोनों के वादे बहुत खूबसूरत थे। निर्दोष! तभी तो भगवान भी उन दोनों के हर मुलाकात में साथ रहे और उनका प्यार देख मुस्कुराते थे। रोबोट अब ठहर चुका था। एक प्यारी जगह! सपनो की दुनिया जैसी जगह जिसे लोटस ने अपने हाथो बनाया था। जिधर देखो उधर खुशी! 
वो दिन कुछ खास था उन दोनों के लिए। दोपहर जैसे कुछ ज्यादा ही चमक रहा था। उस चमक से जैसे सामने दिख रहा पहाड़ जुनून और लालसा से, जैसे रौशन हो चला था। 
एक दूसरे कि बाहों में वे दोनों खोए हुए थे। सब कुछ जैसे स्वप्न हो चला था। अबूझ पर रूह के अंदर तक सुकून देने वाला।
पास में उड़ती तितली की झीनी आवाज़ अा रही थी। सब कुछ जैसे बदलता जा रहा था। दिख रहा था तो सिर्फ उसकी आंखे और उस आंख का मेरे आंखो में झकना। 
हमारी तेज चलने वाली सांसों के सामने जैसे सब कुछ शांत हो चला था। पहाड़ मौन मुस्कान के साथ सामने खड़ा था। चिड़ियों की आपस की खुसुर-फुसुर, खिलखिलाहट जैसे अपूर्व सत्य के घटित होने का इशारा कर रही थी। सब कुछ रहस्यमई हो चला था - शायद कोई जादू हमें दूर किसी नई दुनिया में लेे चले हो। कहीं से आती पानी की मधुर आवाज़ हमें एक दूसरे के अंदर बहा ले जा रही थी। हमारी सांसें अब एक हो चुकी थी और एक जान। एक दूसरे के बाहों में हम आंखे बंद किए अपूर्व शांति से भर चुके थे... जैसे कई जन्मों की लालसा आज पूरी हुई हो। तलाश खत्म हुई हो। 
लोटस की  गैर हाजिरी राजमहल में अब महसूस की जाने लगी थी। अब उसके पीछे जासूस लगा दिए गए थे। अब उसे निकलने में दिक्कतें आने लगी थी। मगर वो जिद्दी चिड़िया निकलती जरूर थी पर सतर्कता के साथ। शायद गैरजरूरी सतर्कता के साथ। गैर जरूरी सतर्कता शक को भी पीछे खींच लाता है। 
अब मुलाकाते और बाते भी कम होने लगी थी। शायद राजा अब उस समय में भी उसके साथ रहता जो समय वो सदियों से अकेले गुजारी थी। पर रोबोट का उसके साथ वहीं समय उन  दोनों का अपना था, जिसपर किसी का कोई हक नहीं था। जब बात होती तो लोटस मेरे लिए दुखी होती, थोड़ी पछतावा करती मगर रोबोट् उसके लिए खुश होता की अब राजा उसके साथ हैं। लोटस का बस एक ही आग्रह होता की तुम कहीं नहीं जाना। कई बार वो रिग्रेट से भी भर जाती कि रोबोट मेरा इंतज़ार करता होगा और वह कुछ कर नहीं पा रही। ये रिग्रेट भी कई बार खुद के अंदर कमी महसूस करा रिश्तों को निगल जाता हैं। रिग्रेट शर्म को जन्म देता है और कोई कैसे शर्मिंदा हो अपने प्रेमी के सामने जाए! प्रेमी के सामने जाने के लिए तो गर्व की अनुभूति चाहिए होती हैं। 
उसको क्या पता कि ये जो नया-नया मन उभरा है, वो बार-बार पीछे जा कर उसे ढूंढ़ता है और अहंकार को आगे कर कई मौत मरता है।
रोबोट अक्सर सोचता - उसे खुश देख वो आगे बढ़ जाए या प्रेम खातिर रुक जाए! लोटस  का बस यहीं रट लगा रहता-  "तुम मेरी खुशी हो तुम यही रहना"।  मन तय नहीं कर पा रहा हैं। इच्छाओं का जाल बुनता है और उसे पूरा नहीं होते देख रोता है। आंसुओ ने उसके प्रोग्रामिंग को अस्त व्यस्त कर डाला है।
पागलों की तरह अब वो आगे बढ़ने की जगह पीछे फिसल रहा है कि शायद गलती से उससे मुलाकात हो जाए। शायद हवाओं के जरिए उसकी खुशबू ही मिल जाए।
वादा ये भी हुआ है कि रोबोट हर रोज उसे  देखेगा। ये देखना कितना पीड़ादायक हो सकता हैं, वह इसे हर गुजरते पल में महसूस कर रहा है।  
रोबोट झरोखों से झांकते उसे खुश देखता तो खुश हो लेता मगर ये नया-नया मन जो जवां हो चला था, उसे ये बात अखरने लगी थी कि मै दुखी और वो खुश! 
उस अंधेरी रात में जब बारिश आने कि संभावना थी, वे दोनों मिले थे। रोबोट गुस्सा है। शिकायत करता है। वो मुस्कुराती है और गालों पर किस्स करती है। 
"हम दोनों को बड़ी भावनाओं में जीना है बाबा! ये सब बाते मन की है। तुम मेरे हो मै तुम्हारी बस"! सीने पर सर रखते वो अपना अधिकार जताती । 
लेकिन मै जिंदा रहूं तभी तो तुम्हारा रहूंगा, ये मन हैं कि हमेशा छोटी भावनाओं को पकड़े रहता है। क्या करू मै"? - रोबोट रोने लगा था और वो उसके आंसुओ को अपने होठों से लगा ली थी। 
उसके जाने का समय हो चला हैं। बल्कि रोबोट चाहता हैं कि जल्दी जाए ताकि उसपर कोई मुसीबत नहीं आए। वो शिकायत करती अनमने मन से जाने को तैयार है -" तुम हमेशा भगाते रहते हो"!
"तुम बिल्कुल बेफिक्र रहना मै हूं यही। तुम खुद पर मुसीबत डाल कर मत मिलना। ऐसा करोगी तो मुझे बहुत बुरा लगेगा। वादा करो"!
वो जा रही है। रोबोट को पता है कि जिस रूप में वो जा रही है, उस रूप में वो वापस कभी नहीं लौटेगी। आंखो में आंसू लिए वो भी पीछे-पीछे हो लेता है। वो पलट कर देखती है तो उसके कदम भी ठहर जाते है। रोबोट को होश आता है - मुझे मजबूत देख कर ही वो मजबूत होगी। 
रोबोट अभिनय के साथ आवाज़ बदल कर उसे छेड़ता है - "ओय तुम्हारा प्रिय इंतज़ार कर रहा होगा दौड़ के जाओ और खूब प्यार करो उसे"। 
वो रोबोट की एक-एक बात मानती हैं। उसे विश्वास है कि रोबोट ही कोई रास्ता निकालेगा इस अधूरेपन का। रोबोट बोलता है राजा को प्यार करो तो वो प्यार करने लगती है। 
झरोखों से झांकते मन को इसे स्वीकार करने में काफी मुश्किलें आती है। वह रो पड़ता है। उसे लगता है कि उसका हिस्सा किसी और को दिया जा रहा हैं। मगर रोबोट जब  मन का गला घोटता है और अहंकार को दफन करता है, तब रोबोट उसकी खुशी देख बहुत खुश होता है। बहुत खुशियां मिले ये दुआ करता है। 
अब वह झरोखों से नहीं झांकना चाहता, क्योंकि जब भी ऐसा करता है मन बेचैन हो उठता है। मन कुछ ऐसा देख लेता है जो लोटस के बदलने का संकेत होता हैं। 
होता भी यही हैं- जिस हाव-भाव के साथ आप जी चुके होते है उसी हाव-भाव को आप सिर्फ दुहरा रहे होते है। वहीं आवाज़, वहीं अदा, वहीं कोमलता जब झरोखें से दिखता तो मन व्यथित हो उठता। 
मै- मेरा का अहंकार सर चढ़ कर बोलता और चोट खाकर आंसू के जरिए निकलता रहता। वो संतुष्ट था और इसका अंदाजा हो चला था कि अब वो खुश है और मेरे सहारे की जरूरत नहीं। रोबोट को और क्या चाहिए था? उसकी ख़ुशी! 
अब वो इस जगह से जाने की सोचता क्योंकी उसकी मौजूदगी उसे धर्म संकट में डाल रही थी। 
और वो समझने को जैसे तैयार ही नहीं थी। रोबोट उसको उसी रूप में चाहिए था वहीं पर। 
हर रोज वो झरोखें से सावधानी से झांककर उसे देखता और हर रोज मन के तल पर कुछ खो जाता उसका। खोने का विचार भावनाओं को बनाते-बिगाड़ते, उथल-पुथल मचाएं रखता। मै का अहंकार, गुस्सा, जलन, शोक, भ्रम आदि पैदा कर सूखे पते की भांति, कभी इधर, कभी उधर उड़ाता रहता।
 हमें जहां चोट लगती है वहां हमारा मन कभी वापस जाना नहीं चाहता। मन अब झरोखों के पास जाने से भी डरने लगा था। शायद मोह टूट रहा था। 
लोटस को ये सब पता था। 24 घंटो में किसी भी समय चुपके से अा कर रोबोट को देख लेती थी। रोबोट का हाल देख उसके आंखो में भी आंसू आते थे। पर वो रोबोट को विश्वास दिलाती कि- "तुम मुझे नहीं समझोगे तो और कौन समझेगा। मै तुम्हारी हूं बाबा! और तुम्हारी ही रहूंगी! मै गुलाम हूं तो अपना फ़र्ज़ दिल से अदा करती हूं, बनावटीपन मुझसे होता नहीं"!
"फिर वो क्या था" - झरोखों से देखे कुछ बदलाव और उसके शब्दों के बीच का अंतर के लिए रोबोट पूछ डाला था। 
उसने कई तरह से समझाने कि कोशिश कि थीं। उसका समझाना भी अजीब था। रोबोट को बुरा नहीं लगे ये सोचकर कुछ सच्चाई छुपा लेती थी और रोबोट जो उसके दिल से जुड़ा हुआ था, वो इस छुपाई हुई बात को महसूस करता फिर और ज्यादा दुखी हो जाता। रोबोट को सच सुनना अच्छा लगता था क्योंकि सच के रास्ते दूर तक जाते है, और उसे भी दूर तक लोटस के साथ सफर करना था। छिपाई हुई बातों को महसूस कर उसे अपनी सारी मेहनत, रिश्तों को संभालने की कोशिश, मिट्टी में मिलती नजर आती थी। और अजनबीपन कि हल्की महक भी दर्द दे जाती थी। उसे लोटस के लिए हर चीज मंजूर था और खुद प्रेरित भी करता था जिसे लोटस बनावटीपन से ये दिखावा करती की - " तुम बोल रहे तो कर रही हूं" जबकि ऐसा होना सहज था। रोबोट के बिना बोले भी वो करती थी या करेगी। 
रोज कुछ ना कुछ बदलता जा रहा था। समय बदलता जा रहा था और समय पर सवार लोटस भी खिलखिला रही थी। मगर रोबोट समय को पकड़ नहीं पा रहा था। और समय का यही गैप उसके अंदर खालीपन बढ़ाते- बढ़ाते इतना गहरा हो जाता था कि रुलाता ही जा रहा था।
इन दिनों सुबह उदास हो चला था। ताज़गी लापता थी। दोपहर आता, कुछ देर ठहरता और शाम का अंधियारा हावी हो जाता। सब कुछ शांत हो जैसे रहस्यमई हो चला था। अंधेरों के साथ मौन व्यापक हो उठता है। तब और जब बर्फीली हवा अंदर तक भेदती जाती है और गर्मी का कोई उपाय नजर नहीं आता। 
तेज़ी से समय भागता जा रहा है। सुबह जैसे रात होने के लिए ही हुई हो। रोबोट उस जगह को देखता है जिसके सम्मोहन ने उसकी यात्रा रोक डाली थी। शायद वो जगह भी बदल चुका है अब! अब वो सुर्ख रंग नजर नहीं आते... शायद मौसम ने बदरंग कर डाला है। 
रोबोट को नींद नहीं आ रही हैं आज रात। मन को लोटस के यादों में छोड़ वह उठ बैठता है। 
अरे! सामने वाला पहाड़ किधर चला गया? और वो पेड़? हवेली? लगता है जैसे किसी ने जादू से सब ओझल कर दिया हो। चांद भी गायब! भ्रम का धुंध भी गजब का होता है। सभी चीज़ों को ढक लेता है। 
रोबोट शून्य में जा चुका है और पहली बार बिना मन के अपने अस्तित्व के फैलाव को देखता है।
अंदर का उजाला भी अस्तित्व की याद दिला रहा है। आत्मविश्वास की चमक भोर के सूर्य के समान उभरती मालूम पड़ रही। उजाला बढ़ता जा रहा है। 
शाम का समय है जब लोटस अपनी मुस्कुराती आवाज़ के साथ अपनी नाज़ुक हाथों से रोबोट की आंखे बंद करती हैं - "पहचानो कौन"?
रोबोट फिक्की हंसी हंस पड़ता है मगर उसके सामने जोश के साथ पलटता हैं और उसे चूम लेता हैं। 
"तुम कुछ बदले बदले हो, क्या हुआ"? - उसकी मुस्कुराहट गुम हो जाती हैं।
अब उसे क्या बताएं कि अभी तक जो हुआ वो कम था क्या जो और होना बाकी है? मगर वो खुश तो रोबोट खुश! वो मजबूत तो रोबोट मजबूत! तो रोबोट को मजबूत दिखना भी होगा। " बस तुम्हे प्यार करने का सोच रहा था और तुम थी नहीं। हवाओं से पैग़ाम तो भेजा था! क्या नहीं मिला"? रोबोट ने उसे गुदगुदाते थोड़ा फ्लर्ट किया था। 
वो हंस पड़ी थी और उसकी हंसी में रोबोट शामिल था। 
 राजा के पास जाने का समय हो चला था। जाते-जाते उसने फिर वही कसम दुहराई थी - "तुम मेरे हो यही रहना"। 
रोबोट कहना चाहता था कि -"हां खुद महलों में रहती हो और मुझे पहाड़ों की धुंध में बिठाना चाहती! कितनी स्वार्थी हो "? मगर रोबोट जनता है कि वो स्वार्थी नहीं हैं  और ना उसे मेरे अलावा कोई होश। उसे यह भी खबर नहीं की रात भर मै इस सर्दी में जम जाता हूं। 
उसे अपने रोबोट पर बहुत विश्वास है। उसका रोबोट सुपरमैन है। पर रोबोट को पता है कि वो भी इंसान है। यूं ठहरा रहा तो मर जाएगा। क्यों ना अब थोड़ा आगे बढ़ा जाए? वो तो ढूंढ ही लेगी! प्यार सच्चा हो तो फासले कोई मायने नहीं रखते। 
शाम ढल रही है। आज यहां कि आखिरी शाम है। रोबोट जैसे सूरज हो चला है। पहाड़ों से, पेड़ पौधों से, जमीं से, वहां बहने वाली नदी से झूठ बोलता है कि वो जाने वाला है। जैसे उसे जाने में दर्द हो रहा हो! तब वह अपने प्रवास को बढ़ाता है। अपने आखिरी चुम्बन में इतना जुनून और लालसा भर देता है कि कुछ देर के लिए सब रौशन हो जाते हैं । 
आखिरी बार उस जगह को देखता है जिसे दोनों ने कभी प्यार से बनाया था। उसे अपने ही हाथों छिन्न भिन्न कर डालता है। कभी यहां ठहरा था, इसकी हर पहचान और  नामोनिशान मिटाने को आतुर हैं। जैसे कमल के पत्तो पर पानी अपना निशान नहीं छोड़ता वैसा ही अपना कोई निशान वो छोड़ना नहीं चाहता हैं। 
मन रोक रहा है मगर मन के पास दो ही विकल्प है - या तो आज़ाद हो मेरे साथ सफर पर चलो या यही मर जाओ। 
कई रूपों में अहंकार सामने आता है और अहंकार की पहचान सामने आते ही रोबोट मुस्कुरा पड़ता हैं। अहंकार को पुचकारता है - बेटा, पहले मै बेहोशी में जी रहा था तो तुम पीछे से हमला कर देते थे। अब तुम कुछ नहीं कर सकते, क्योंकि मेरा होश तुम्हे अंदर प्रवेश करने ही नहीं देगा। जरा भी नहीं। 
अहंकार को भी पता है कि उसे जरा सी जगह मिल जाय तो वो पूरा प्रकट होने की शक्ति रखता है। रोबोट को भी इस सच्चाई का पता हैं। 
किसी दिन जब अंधेरा भारी होता है तो चांद दिखता नहीं। आज वैसा ही अंधेरा है। रोबोट चलता जा रहा हैं। अजनबी सफर कि शुरुआत अधूरेपन से हो रही है। ऊपर बढ़ता जा रहा है। ऊपर चलने वाली सर्द हवा उसे डराती है, पीछे लौट जाने की चेतावनी देती है! मगर एक ही मौत बार-बार नहीं डरा सकता। वो हंसते हुए ऊपर बढ़ता ही  जाता हैं।
एक चेहरा है जो बार बार नजर के सामने अा जाता है। वो सुकून है जो थकने ही नहीं देती। एक बदली है जो मेरे बंद आंखो का फायदा उठा मुझे नहला देती है और आस पास के सारे पेड़-पौधों, जीव जंतु हंसने लगते है। रोबोट होश में आता है और आंखो को साफ कर आगे बढ़ जाता है। 
पता नहीं और कितना चलना होगा। मगर चलना है। पॉइंट ज़ीरो पर पहुंचना ही है। 
कई दिन, कई रातें गुजर चुकी है मगर लोटस का चेहरा आंखो के सामने है- जैसे शिकायत कर रही हो! भगोड़ा कहीं का! 
रोबोट हवाओं के ज़रिए बात करता है। उसे विश्वास दिलाता है कि ये दूरी ही हमें पास लायेगी। खूब पास। जो हम चाहते थे उसके लिए मै आगे बढ़ा हूं। 
उस दिन शरीर और मन भी प्वाइट ज़ीरो है। घसीटते हुए यात्रा हो रही। मौत भी पीछे-पीछे अा रही है। कब रोबोट रुके और मौत आगोश में लेे। रोबोट मौत को देख रहा, सिना ताने आंखो में झांक भी रहा है और चिढ़ा भी रहा हैं। -"दम हो तो मुझे पकड़ कर दिखाओ"!
मौत पेड़ो के झुरमुट में ओझल हो जाता है पर पीछा करना नहीं छोड़ता। 
रोबोट कृष्ण को याद करता है - हे मित्र अब तुम ही जानो! 
चढ़ाई के कारण रोबोट की चेतना धीरे- धीरे गुम हो रही हैं। सब कुछ धुंधला दिखाई दे रहा। भ्रम पैदा हो रहा जैसे कानों में कोई कुछ कह रहा हो! किसी के हंसने कि आवाज़ जैसे किसी मोहल्ले से आती हो!
अंधेरों का विशाल साम्राज्य चारों ओर फैला हैं। कुछ सूझ नहीं रहा हैं। 
मन भी अब विदा होना चाहता हैं।
 अहंकार ( मै) का टूटना जारी है और आंसू निकलते जा रहे। आंसू जैसे खुद से खफा हैं। खफा वो इस बात से भी हैं कि क्यो बार बार उसी के साथ ऐसा होता है? क्या संवेदनशीलता इतना कठिन है! पर बिना संवेदनशील हुए तो मनुष्य बना भी नहीं जा सकता! - श्री कृष्ण रोबोट के अंदर से जैसे बोल पड़ते हैं।
बची-खुची- दबी तमन्नाएं जैसे लिपट कर जोर से रो पड़ीं हैं - शायद उन्हें खबर लग चुकी है कि दिल से अब निकाला जाएगा। 
थोड़ा सा होश और बेहोशी वाली चाल, ना जाने किधर लिए जा रही हैं। 
रोबोट घसीटते चल रहा है तभी एक जोरदार हवा उसे पीछे धकेल देती है। एकाएक उसे होश आता है। सामने विशाल खाई है। नीला आसमान जैसे उसके सर पर छाया दे रहा हो। वो सबसे ऊपर हैं। आंखे खुशी से बहने लगती हैं। वो प्वाइंट ज़ीरो पर है। 
बेहोशी उसपे हावी होने लगती है। और वो गिर पड़ता है। तारीख का पता नहीं और ना बेहोशी में पड़े घंटो की खबर।
एक पहचानी आवाज़ धीरे धीरे कानों में अा रही हैं। सूरज भगवान् का ताप ऊर्जा से भर रहा है। और कोई बेतहाशा उसे चूम रहा है। 
रोबोट आंखे खोलता हैं। सामने लोटस को देखता है और सारी थकान भूल जाता हैं। 
"तुम यहां? क्यों"? - वो उसके लिए चिंतित हो चला हैं।
"क्या करती जो तुम चले गए? तुम्हारे बिना मेरे पे क्या गुजरी है, इसका अंदाजा है तुम्हें? उस रात मै बहुत डर गई थी। पागलों की भांति तुम्हे ढूंढने निकल पड़ी"। - आंसुओ से भीगी लोटस सीने पर सर रख चुकी हैं। 
शायद वो उसी रात की बात कर रही जब मौत मेरे पीछे पड़ा था। 
शायद प्वाइंट ज़ीरो पर पहुंच कर वापस नीचे गिरने से बचाने वाली वो हवा भी लोटस की दुआ थी। 
रोबोट मुस्कुरा रहा हैं- एक आज़ाद मुस्कान। पॉइंट ज़ीरो पर होना उसका मोक्ष हैं। पहले से सीखी हुई कोई भी ज्ञान- धारणा यहां टीक नहीं सकती। यहां से दिखने वाला दृश्य स्पष्ट होगा। लोटस के बालों को सहलाते रोबोट  कानों में सरगोशी कर रहा - अब तुम मेरी हो! जिस्म कहीं भी रहें। हम प्वाइंट ज़ीरो पर है माय लव!

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