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'डिजीज ऑफ मी'

'डिजीज ऑफ मी' ___________________ तब मेरा आत्मसम्मान उफान पर था। जरा - जरा सी बातें आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाती मालूम पड़ती थी। तब मैं अभी-अभी  दुनियां के जंगली भीड़ में निकला ही था। कोई इधर हमला करता कोई उधर तो कोई सामने से! तो कोई चुपके से पीछे वार करता। मेरा आत्मसम्मान भी      'डिजीज ऑफ मी' से पीड़ित था। मेरे साथ ही ऐसा क्यों? मेरे साथ ही ऐसा कैसे हो सकता है? मैंने जब उसका कुछ बिगाड़ा नहीं तो वो मेरा कैसे बिगाड़ सकता हैं?  आह... इसने तो उल्टे मेरी इंसल्टी कर दी! अरे! यह तो उल्टा मेरे साथ बतमिजी भी कर रहा!  आत्मसम्मान में सेंध लगनी शुरू थी, अब मेरी बचाने की कोशिश भी आधे - अधूरे मन से ही हो रहा था क्योंकि अब मै जंगली दुनिया के हिंसक जानवरों के बीच में था जिनके लिए मानवता किताबो की बात थी तो मुझे अपना पूरा ध्यान उनसे बचने में ही लगानी थी।  इन्हीं जंगलों और जानवरों के बीच मैंने सीखा कि जानवर अपने स्वभाव से पेश आएंगे और मुझे अपने स्वभाव को बचाएं रखना हैं। असमंजस से भरे हुए उन दिनों मेरे अंदर कई सवाल थे जिसको पूछने का सबब नासमझी ही समझी जाती या कोई गुरु मिल नहीं