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संदेश

वह कृष्ण हैं।

अस्तित्व के विशाल अंधेरों के बीच एक प्रकाश का जन्म लेना। उस प्रकाश का अंधेरों को चुनौती देना, और धीरे–धीरे अपने साहस, निर्भयता और कर्म से अंधेरों पर विजय प्राप्त कर लेना, मेरे लिए कृष्ण वही प्रकाश हैं।   कृष्ण का मेरे जीवन में अचानक से प्रवेश  हुआ था। आम लोगो कि तरह ही कृष्ण के बारे में मेरी जानकारी सीमित थी।  जब तक जीवन आरामदायक रहा तब तक कृष्ण मेरे से दूर रहे। मैं भी दूर रहा। और फिर जीवन में संघर्षों का आगमन होना शुरू हुआ था। भविष्य का डर सामने मुंह बाए खड़ा मिलता था।   हर रोज थोड़ा–थोड़ा करके, अंदर से कुछ टूटता जा रहा था।  हर रास्ते अंधेरे में जा कर समाप्त हो रहे थे।  मौत से आमना सामना प्रायः हो जाता था।  मैं लगभग असहाय था।  तभी किसी अंधेरी रातों में मेरे अंदर कृष्ण का जन्म हुआ था।   उनकी उंगलियों को थाम मैने दुबारा से चलना सीखा था।  कृष्ण के साथ मेरी सहजता दिन ब दिन अब बढ़ते जा रही थी। कृष्ण के राह पर चलना हैं ये निश्चित था। कई किताबे, लेख , भागवत गीता आदि पढ़ने का क्रम जारी था।   कृष्ण को समझना बड़ा कठिन था। कृष्ण मुस्कुराने को बोलते थे इसके वावजूद भी कि आपके जीवन में कितना भी बुर
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Importance of smaller steps

वह रेगिस्तान था रेगिस्तान ही रहा री

वह रेगिस्तान था रेगिस्तान ही रहा। लोग आते रहे, कदमों के निशान बनते रहे और आंधियां निशान मिटाती रही।  **************************************** वह एक पहाड़ी लड़का था तो पहाड़ी लोककथा और लोकगीत सुनते हुए बड़ा हुआ था। सपने भी उसे हरा–भरा और रोमांच वाले ही आते थे।  लेकिन अक्ल का दांत टूटते ही उसके सपने, दुस्वप्न में बदल चुके थे। सपनों का ऐसा डर की रात में सोने से डर लगे। नींद की गोलियों के असर से सपने रात भर के लिए सप्रेस्ड तो हो जाते थे लेकिन होश आने पर, दिन की रौशनी में उसकी काली परछाई चारों तरफ से घेरे  रहती।  वर्षो बाद उसे फिर से वही दुस्वप्न दिखने लगे थे। उसे ताज्जुब हो रहा था कि उसका जीना नया हैं, कर्म नया हैं और कर्म का कोई अतीत भी नही होता, फिर भी वर्षो बाद वही दुस्वप्न आ रहे हैं।   वह एक पहाड़ की आसान सी चढ़ाई पर चढ़ रहा हैं। यह सूर्यास्त से ठीक पहले का समय है। पहाड़ की चोटी गाढ़ी रौशनी से नहाई हुई हैं। यह रौशनी डरावनी रूप में उसकी तरफ बढ़ रही है। पहाड़ की तलहटी में पानी की ठहरी हुई एक झील हैं, जो अस्त हो रहे सूरज के रंगों से झिलमिला रहीं हैं। अचानक अंधेरा हो जाता हैं। पहाड़ जीवन स

सुबह की चाय

सुबह की चाय मीठी होनी चाहिए। रात की कड़वाहट घुल जाती हैं।  बेड टी की आदत महीनो पहले छूट चुकी थी। अब चाय की याद भी मुश्किल से आती थी।  उन दिनों वह जहां रह रहा था वहां चाय की जगह उबले पानी में कुछ पहाड़ी जड़ी बूटियों को डाल एक शक्तिशाली पेय से दिन की शुरुआत होती थी।  दुकान चलाने वाली महिला उसे दुकान में घुसते देख हंसती थी, शायद वह इस पेय को चाय समझ कर पीता था इसलिए।  उसकी आवाज मुश्किल से उनलोगो ने सुना होगा और उन्हें ऐसा लगता था कि वह गूंगा हैं। इशारों इशारों में लेन– देन होता था। एक सुबह नारियल के पेड़ वाली उस दुकान में घुसते ही हंसने और उसे लक्ष्य कर बोली गई बात सुनाई दी।  यहाँ स्वर्गबाट ​​निर्वासित देवता आउनुहुन्छ। (लो आ गए स्वर्ग का कोई निर्वासित देवता)  उनकी बातें सुन वह भी मुस्कुरा पड़ा था। वह थोड़ी बहुत यह भाषा समझता था,पर उन्हें लगता था कि उसे इसकी समझ नही।  शायद उसके लिए यह सबसे सटीक पहचान थी।  एक खूबसूरत दिल जिसने कभी किसी को पीड़ा नही पहुचाई होगी, आज खुद पीड़े में था। वक्त की साजिशे देख ऐसा लगता था कि सजा का ये सिलसिला कभी खत्म ही नही होगा। संभलने की कोशिसे करता और फिर से गिरा

मातृभाषा दिवस

मैं तब पूरी तरह एथेस्ट बन चुका था। मेरी भाषा उनकी भाषा इन सब से ऊपर उठ चुका था। ( ऐसा मेरा मानना था।)   इंग्लिश लाइफ स्टाइल, इंग्लिश गाने, इंग्लिश इमोशंस वाली एटीट्यूड आदि मेरे अंदर रच बस चुके थे।  लेकिन वे पल जिसमे मृत्यु मेरे करीब थी,  बेहोशी में बुदबुदाने, दर्द से चीखने वाले शब्द मातृभाषा से आए थे।  नदियां के पार और हम आपके हैं कौन, दोनो एक ही प्रॉडक्शन की एक ही कहानी पर आधारित फिल्में हैं। लेकिन इमोशन के स्केल पर भोजपुरी भाषी नदिया के पार देख कर ज्यादा इमोशनल होंगे।  मैं दावे के साथ कह सकता हुं कि अमेरिका यूरोप के लाइफ स्टाईल में रचे बसे भोजपुरी भाषी के सामने अचानक से नदिया के पार फिल्म देखने का संयोग आए, तब इन भोजपुरी भाषी के अंदर अचानक से कुछ चेंज हो जायेगा। सुक्ष्म मन हमेशा मातृभाषा को सुरक्षित रखता हैं, और चाहे आप किसी भी कंट्री के लाइफ स्टाइल में रचे बसे हो! मातृभाषा से सामना होने पर आंखे गिली होनी तय है।  मां ही मातृभाषा है और मातृभाषा ही मां हैं।  मातृभाषा दिवस की शुभकामना।

The Brighter the light the deeper the shadow

Once Upon a Time. There Was The Brighter the light and the Deeper the shadow. ************************************************ रास्ते जानें पहचानें है लेकिन पैर थके मांदे हैं। सफर कुछ कदमों पर रुका सा है जैसे कही जाना नही चाहता हो।  बिना चिड्डियो वाली आकाश हैं। थकी– उलझी शाम बेरंग सा वक्त के साथ घसीटे जा रही, जैसे रात में गुम हो दिन को भूलना  चाहती हो।   शाम को लेकर मेरा निश्चित मत था कि शाम से ज्यादा दिलकश कुछ भी नही। दर्द और प्रेम से भीगी हुई... बिछड़ने का गाढ़ा रंग।   ढलते हुए सूरज भगवान का आहिस्ते आहिस्ते खोते जाना... चिड़ियों वाली आकाश, चिड्डियो का घर लौटना और थके मांदे उजालों का अंधेरों के आगोश में जाना। वक्त वक्त की बात हैं और इसी वक्त में से निकल कर  कुछ घंटे कोलाहल और निरवता के बीच चुपके से बैठ गए हैं।  ट्रैफिक का शोर घर जाने को बेचैन हैं। चकाचौंध वाली सड़के आगे चल कर अतीत की परछाई लिए सुनी सड़को में तब्दील होते जा रही हैं। इसी सड़क पर आगे चल कर वो जगह आती है। शहर को शहर से माइनस कर देने वाली जगह। लोग अपनी अपनी एकांत से मिलने यहीं पर आते हैं।  रात में यह जगह आकाश को अपने अंदर

हाथ खाली हैं।

ऐसी तो कोई आह नहीं जीवन में  इस जीवन में बचाने योग्य क्या है? बुझ गई न जो बन एक अधरों पर ऐसी तो कोई चाह नहीं जीवन में! खो गई न हो जो अंधकार में सहसा ऐसी ततो कोई राह नहीं जीवन में! पल भर जो अवलंब मुझे दे सकती ऐसी तो कोई थाह नहीं जीवन में! विचलित कर सकती जो नियति के कम को ऐसी तो कोई आह नहीं जीवन में  इस जीवन में है क्या? जरा आंख खोला और गौर से देखो तुम्हारे हाथ खाली हैं। कितने ही भरे हों तो खाली हैं। सिकंदर के हाथ भी खाली हैं।  इस दुनिया में लोग चाहे कितने ही धन से सजे हों, भीतर का मालिक जब तक जागा नहीं, भीतर के स्वामी से जब तक पहचान न हुई, तब तक सब धोखा है। रोओग एक दिन, पछलाओगे एक दिन। मौत जब द्वार पर आकर खड़ी होगी और सब छीन लेगी जिसे तुमने कमाया था; जिसे तुमने इतनी आकांक्षा से पकड़ा थज्ञ, इतनी आतुरता से पकड़ा था। जब सब छिन जाएगा तो तड़फोगे।   मेरे देख, लोग मौत से नहीं डरते -डरते हैं, मौत जो छीन लगी उससे। मौत से तो डरोगी भी कैसे? पौ से तो पहचान ही नहीं है। अपरिचित से क्या डर? कौन जाने मौत अच्छी ही हो, मीठी हो! कौन जाने मौत और नए जीवन का द्वार हो!  मौत से तो कोई पहचान नहीं है तो मौत से क्या