वजहें बेवजह होती हैं... कभी-कभी हम ज़िंदगी में किसी चीज़ के पीछे भागते हैं — एक मुकाम, एक इंसान, एक ख्वाब — ये सोचकर कि जब वो मिल जाएगा, तो सब ठीक हो जाएगा। मगर जब वो मिल भी जाता है, तो दिल के खाली कोने वैसे के वैसे रह जाते हैं। तब एहसास होता है कि शायद हम जिसे वजह मानकर जी रहे थे, वो खुद एक बेवजह तलाश थी। इश्क़ में भी ऐसा ही होता है — हम किसी से मोहब्बत कर बैठते हैं, बिना ये सोचे कि क्यों। जब कोई पूछता है, "तुम उसे इतना चाहते क्यों हो?" तो हमारे पास कोई ठोस जवाब नहीं होता। सच तो ये है कि मोहब्बत की सबसे बड़ी वजह यही है कि उसकी कोई वजह नहीं होती। कभी-कभी हम किसी से नाराज हो जाते हैं, रूठ जाते हैं, यहां तक कि उनसे दूर चले जाते हैं। मगर जब खुद से पूछते हैं कि असल ग़लती क्या थी, तो जवाब धुंधला सा लगता है। शायद दर्द की सबसे बड़ी सच्चाई यही है — वो बिना वजह भी जिंदा रहता है। और कभी ज़िंदगी हमें ऐसे मोड़ पर ला खड़ा करती है, जहां हम हार मान लेते हैं, बिना जाने कि हार किससे हो रही है। हम थक जाते हैं, बिना जाने कि किससे लड़ रहे हैं। शायद, ये लड़ाई भी बेवजह होती है — जैसे जीना कभी-कभी ...
हम आंखे खोलते हैं, आंखो को कुछ भा जाती है। मन सोचता है कि काश यह मेरा होता। विचारो द्वारा इच्छाओं का जन्म होता है और घनीभूत होते विचार हमे चाहते ना चाहते उस ओर धकेल देते है। इच्छाओं का जन्म हुआ है तो मृत्यु आवश्य होगा लेकिन इच्छाओं की मृत्यु सहज नहीं होती। इसका पूरा होना ही मृत्यु है चाहे वास्तविकता में पूरा हो चाहे कल्पना में।